भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष ने एक बार फिर से दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों को उजागर किया है। 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या ने इस संघर्ष की चिंगारी को भड़काया। इस हमले की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली, जिसे पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी माना जाता है।भारत-पाकिस्तान तनाव 2025: ऑपरेशन सिंदूर, संघर्षविराम और शांति की आस
ऑपरेशन सिंदूर: भारत की निर्णायक प्रतिक्रिया
हमले के जवाब में, भारत ने 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू किया, जिसमें भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के भीतर नौ स्थानों पर आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इस ऑपरेशन में राफेल लड़ाकू विमानों से SCALP मिसाइलें और हैमर बम का उपयोग किया गया। भारत ने दावा किया कि इन हमलों में जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के कई ठिकानों को नष्ट किया गया और लगभग 100 आतंकवादी मारे गए। Wikipedia+1Wikipedia+1Wikipedia
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और बढ़ता तनाव
भारत के हमलों के जवाब में, पाकिस्तान ने ‘ऑपरेशन बुनियान अल-मरसूस’ के तहत भारतीय सैन्य ठिकानों पर मिसाइल और ड्रोन हमले किए। इन हमलों में जम्मू, पठानकोट, उधमपुर और भुज के वायुसेना अड्डों को निशाना बनाया गया, जिससे कुछ हद तक नुकसान हुआ।
अमेरिका की मध्यस्थता और संघर्षविराम
10 मई को, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मध्यस्थता से दोनों देशों के बीच संघर्षविराम की घोषणा की गई। हालांकि, संघर्षविराम के कुछ ही घंटों बाद, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर उल्लंघन के आरोप लगाए। जम्मू-कश्मीर के कई क्षेत्रों में गोलाबारी और ड्रोन गतिविधियों की रिपोर्टें सामने आईं। New York Post
भविष्य की राह: शांति की संभावनाएं
हालांकि वर्तमान में स्थिति तनावपूर्ण है, लेकिन दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि समय के साथ स्थिति में सुधार होगा। भारतीय और पाकिस्तानी सैन्य अधिकारियों के बीच वार्ता की योजना बनाई गई है, जिससे संघर्षविराम को मजबूती मिल सकती है।
निष्कर्ष
भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया संघर्ष ने एक बार फिर से यह स्पष्ट किया है कि दोनों देशों के बीच स्थायी शांति के लिए संवाद और सहयोग आवश्यक हैं। जब तक आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई नहीं की जाती और विश्वास बहाली के उपाय नहीं किए जाते, तब तक इस तरह के संघर्षों की पुनरावृत्ति की संभावना बनी रहेगी।
भूमिका: संघर्ष की चिंगारी
2025 की गर्मियों की शुरुआत कुछ ऐसी खबरों के साथ हुई जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक पर्यटक बस पर किए गए भीषण आतंकी हमले में 26 मासूम जान गंवा बैठे और दर्जनों घायल हो गए। घटना के तुरंत बाद पूरे देश में आक्रोश की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर न्याय की मांग उठने लगी, और सरकार पर दबाव बढ़ा कि वह इसका ठोस जवाब दे।
मानवता पर हमला: पर्यटकों की त्रासदी
हमले के शिकार वे लोग थे जो केवल कश्मीर की वादियों का आनंद लेने आए थे। उनमें से कई पहली बार घाटी आए थे, और किसी ने कल्पना नहीं की थी कि उनकी यात्रा इस तरह का मोड़ ले लेगी। कई मृतकों के परिजन मीडिया से बात करते हुए रो पड़े — “कभी सोचा नहीं था कि एक सुंदर जगह इतनी त्रासदी में बदल जाएगी।”
यह हमला केवल एक आतंकी कार्रवाई नहीं था, यह मानवता के मूल्यों पर चोट थी। एक माँ ने अपना बेटा खोया, एक बच्ची अब अनाथ हो गई। यह वह क्षण था जिसने पूरे भारत को एकजुट कर दिया।
‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ और पाकिस्तान कनेक्शन
घटना की जिम्मेदारी ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (TRF) ने ली, जो लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी संगठन माना जाता है। TRF पहले भी कई आतंकी घटनाओं में शामिल रहा है और इसका संचालन पाकिस्तान से किया जाता है — ऐसा भारत के सुरक्षा एजेंसियों का कहना है।
सरकार और खुफिया एजेंसियों को इस बात के पर्याप्त संकेत मिले कि इस हमले की योजना सीमा पार से बनाई गई थी। इससे भारत के धैर्य की सीमा टूट गई।
‘ऑपरेशन सिंदूर’: भारत का जवाब
भारत सरकार ने इसका त्वरित और निर्णायक उत्तर देने का निर्णय लिया। 7 मई को भारतीय वायुसेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की शुरुआत की, जिसमें सीमापार आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। यह कार्रवाई रात के अंधेरे में की गई ताकि दुश्मन सतर्क न हो पाए।
मुख्य बिंदु:
- 9 आतंकी ठिकानों को ध्वस्त किया गया।
- SCALP मिसाइलों और हैमर बमों का इस्तेमाल हुआ।
- राफेल और सुखोई फाइटर जेट ने यह ऑपरेशन अंजाम दिया।
- लगभग 100 से अधिक आतंकियों के मारे जाने का दावा।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया: ऑपरेशन ‘बुनियान अल-मरसूस’
भारत की इस आक्रामक कार्रवाई के बाद पाकिस्तान भी चुप नहीं बैठा। उन्होंने ‘ऑपरेशन बुनियान अल-मरसूस’ नामक जवाबी कार्रवाई शुरू की जिसमें जम्मू, पठानकोट, उधमपुर और भुज जैसे वायुसेना ठिकानों पर ड्रोन और मिसाइल हमले किए गए।
हालांकि, भारत की एयर डिफेंस प्रणाली ने कई मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर दिया और नुकसान को काफी हद तक कम किया। लेकिन फिर भी कुछ इलाकों में नागरिकों को नुकसान पहुंचा।
संघर्षविराम की पहल: अमेरिका की मध्यस्थता
इस टकराव को रोकने के लिए अमेरिका ने हस्तक्षेप किया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों से बात की और संघर्षविराम पर सहमति बनी। अंतरराष्ट्रीय समुदाय — संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ, रूस और चीन — ने भी संयम बरतने की अपील की।
हालांकि संघर्षविराम की घोषणा के कुछ ही घंटों के भीतर सीमावर्ती इलाकों में फिर से गोलीबारी और ड्रोन गतिविधि की खबरें आने लगीं। इससे यह साफ हो गया कि जमीन पर हालात अभी स्थिर नहीं हुए हैं।
जनमानस की भावना: शांति या प्रतिशोध?
इस पूरे घटनाक्रम में देश की जनता की भावनाएं मिश्रित रहीं। एक ओर लोग सरकार के सशक्त उत्तर से संतुष्ट थे, वहीं दूसरी ओर युद्ध की आशंका ने भी डर पैदा किया। सोशल मीडिया पर हैशटैग्स ट्रेंड करने लगे:
- #JusticeForPahalgam
- #StandWithIAF
- #NoMoreBloodshed
कई लोगों ने पूछा — “कब तक हम खोते रहेंगे अपने प्रियजनों को?” वहीं कुछ ने कहा, “अब और बर्दाश्त नहीं, निर्णायक युद्ध होना चाहिए।”
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
- अमेरिका: संयम बरतने की अपील, लेकिन भारत के आत्मरक्षा के अधिकार को भी सही ठहराया।
- चीन: दोनों देशों को वार्ता की मेज़ पर आने की सलाह।
- रूस: आतंकवाद के खिलाफ भारत के कदमों का समर्थन।
- संयुक्त राष्ट्र: दोनों देशों को शांति बनाए रखने का आग्रह।
क्या यह सीमित युद्ध की ओर संकेत है?
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ये घटनाएं “सीमित युद्ध” (Limited War) की शुरुआत हो सकती हैं। दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं, जिससे युद्ध की आशंका और भी गंभीर हो जाती है।
कई विश्लेषकों ने इसे 2019 के बालाकोट स्ट्राइक और उसके बाद की घटनाओं से भी अधिक गंभीर बताया है, क्योंकि इस बार दोनों देशों ने प्रत्यक्ष रूप से मिसाइलों और ड्रोन का इस्तेमाल किया।
सुरक्षा बलों का मनोबल और रणनीति
भारतीय वायुसेना, थलसेना और नौसेना को हाई अलर्ट पर रखा गया है। नियंत्रण रेखा (LoC) और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी गई है।
- सेना प्रमुख ने कहा: “हम किसी भी स्थिति के लिए तैयार हैं। देश की रक्षा सर्वोपरि है।”
- NSA अजित डोभाल ने उच्च स्तरीय बैठकों में रणनीतिक निर्णय लिए।
लोकतंत्र की शक्ति: सरकार का रुख
प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में कहा:
“हम शांति चाहते हैं, लेकिन कमजोरी नहीं। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और उसे समर्थन देने वालों को माफ नहीं किया जा सकता।”
यह बयान न केवल देश को विश्वास दिलाने वाला था, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी भारत की नीति का संदेश देता है।
मीडिया की भूमिका और रिपोर्टिंग
भारतीय मीडिया ने घटनाओं को हर कोने तक पहुंचाया। कुछ चैनलों ने लाइव एनालिसिस दिखाए, वहीं कई ग्राउंड रिपोर्टर्स संघर्ष के बीच से रिपोर्ट करते नजर आए।
हालांकि कुछ मीडिया संस्थानों पर भड़काऊ रिपोर्टिंग और राष्ट्रवाद को भुनाने के आरोप भी लगे। यह भी एक बहस का विषय बना कि मीडिया का जिम्मेदार व्यवहार क्या होना चाहिए?
शांति की राह: क्या है आगे का रास्ता?
- संवाद की बहाली: सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत जरूरी है।
- आतंकवाद पर वैश्विक कार्रवाई: पाकिस्तान को आतंकी संगठनों के खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे।
- जनता से संवाद: दोनों देशों के आम नागरिकों को युद्ध नहीं, विकास चाहिए।
- विश्व मंच की भागीदारी: अंतरराष्ट्रीय समुदाय को केवल बयानबाजी से आगे बढ़ना होगा।
निष्कर्ष: संघर्ष या समाधान?
भारत-पाकिस्तान संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं, लेकिन इस बार की घटना ने एक बार फिर दिखाया कि आतंकवाद के खिलाफ एक स्पष्ट नीति और ठोस कदमों की जरूरत है। भारत की प्रतिक्रिया दर्शाती है कि अब “स्ट्रेटेजिक रेस्ट्रेंट” की जगह “स्ट्रेटेजिक रिस्पॉन्स” ने ले ली है।
हालांकि यह समय युद्ध का नहीं, समाधान का है। हर माँ चाहती है कि उसका बेटा सुरक्षित घर लौटे। हर सैनिक चाहता है कि देश शांतिपूर्ण रहे। और हर नागरिक चाहता है कि वह भय के बिना जीवन जी सके।